आहार की विधि क्रमानुसार

पड़गाहन

हे स्वामी, नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु, अत्र, अत्र, अत्र, तिष्ठः, तिष्ठः, तिष्ठः, आहार जल शुद्ध है।

पड़गहन के बाद शुद्धि

जब मुनिवर विधि मिलने के बाद आपके सामने खड़े हो जाते हैं उसके बाद ३ प्रदिक्षा देते हैं णमोकार मंत्र बोलते हुए। उसके बाद – नमोस्तु महाराज, मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, आहार जल शुद्ध है, भोजनशाला में प्रवेश कीजिए।

पूजा विधि

आव्हानन – “ ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज, अत्र अवतर, अत्र अवतर, अत्र अवतर, तिष्ठः, तिष्ठः, तिष्ठः, मम सन्निहितो भव, भव, वषट् स्थापनम् सन्निधि करणं ” – ऐसा कहकर पुष्प क्षेपण करें।

1. जल – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निवर्पामिति स्वाहा।

2. चन्दन – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निवर्पामिति स्वाहा।

3. अक्षत – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं निवर्पामिति स्वाहा।

4. पुष्प – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो कामबाण विनाशनाय पुष्पं निवर्पामिति स्वाहा।

5. नैवेद्य – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निवर्पामिति स्वाहा।

6. दीप – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो मोहान्ध्कार विनाशनाय दीपं निवर्पामिति स्वाहा।

7. धूप – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो अष्ट कर्म दहनाय धूपं निवर्पामिति स्वाहा।

8. फल – ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो मोक्ष फल प्रप्ताय फलं निवर्पामिति स्वाहा।

अर्घ

उदक चन्दन तन्दुल पुष्पकै: चरुसुदीप सुधूपं फलार्ध कै: 

धवल मंगल गान रवाकुले मम गृहे मुनिराज महं यजे ।।

ॐ ह्रीं श्री उत्तमसागर जी मुनिराज चरणेभ्यो अनर्घ्य पद प्रप्ताय अर्घ्य निवर्पामिति स्वाहा।

इसके बाद शांति धारा, परिपुष्पान्जलि क्षेपण करें एवं पंचांग नमोस्तु करें। पूजा के बाद थाली एवं कटोरी में रोटी, दाल आदि परोसकर पहले दिखायें

आहार देने के लिए शुद्धि

हे स्वामी, नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु, मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, आहार जल शुद्ध है, मुद्रिका छोड़कर, अंजुली जोड़कर, आहार ग्रहण कीजिए।

इसके बाद फिर नमोस्तु करें महाराज के मुद्रिका छोड़ने के बाद हाथ धुलावें

आहार विधि

महाराज जी के खड़े होकर मंत्र बोलने के बाद पहले पानी दें पानी के बाद दूध दें दूध के बाद आहार दें आहार के मध्य मध्य में थोडा थोडा पानी भी दें दूध के बाद खट्टी चीज या खट्टी चीज के बाद दूध न दें। फलरस व् फल के बाद पानी न दें। पानी के बाद फलरस न दें।

" ध्यान रहे "

चौका (भोजनशाला) शुद्धि

चौका प्रकाश युक्त हो, सूखा हो, जीवों से रहित हो और ऊपर स्वच्छ चंदेवा तना हो।

भोजन शुद्धि

कुएं का पानी छानकर लायें और उसी समय छन्ने के जीवाणुओं को कुएं में डालें तथा उस छने जल को गरम करके उससे भोजन बनावें। हाथ की चक्की से या घर की छोटी चक्की से पीसा आटा, शुद्ध दूध और मर्यादित घी होना चाहिये।

आहार देने वालों की शुद्धि

स्नान करके शुद्ध धोती पहनकर आहार दें। शुद्ध वस्त्र पहनने के बाद अशुद्ध वस्तुओ या व्यक्तियों को न छुए लिपस्टिक, नेलपालिश, पाउडर न लगावें। आहार देते समय काला कपड़ा, रेशमी व् गीला कपड़ा न पहने। आहार देने वालों का अंडा, मांस, मदिरा, मधु, धूम्रपान, तम्बाकू, गुटका, आदि का जीवन पर्यन्त त्याग अनिवार्य है। जिस दिन मुनिराज को आहार दें उस दिन के लिए रात्रि भोजन का त्याग करें