मुनि श्री १०८ उत्तमसागर जी महाराज का अर्घ

 

 

अष्टकर्म के नष्ट करन को, अष्ट द्रव्य को लाया हूँ ।

अर्घ आपको अर्पण करने, शरण आपकी आया हूँ ।।

गुरुवर तेरे अज्ञ भक्त की, भक्ति को स्वीकार करो ।

भवसागर से मेरी नैया, थोड़ी सी उस पार करो ।।

 

ह्रीं श्री १०८ उत्तमसागर मुनिंद्राय अनर्घं पद प्राप्ताय

अर्घं निवर्पामिति स्वाहा

मुनि श्री १०८ उत्तमसागर जी महाराज की आरती

 जय जय गुरु देवास्वामी जय जय गुरु देवा

आरती करत तुम्हारीआरती करत तुम्हारीमिले मुक्ति मेवा... जय जय...

पूज्य मुनिवर उत्तमसागरआप बड़े ज्ञानीस्वामी आप बड़े ज्ञानी

उपदेशामृत देकर, उपदेशामृत देकरकहते जिनवाणी... जय जय...

धन्य-धन्य वे मात पिताजीपरम भाग्यशालीस्वामी परम भाग्यशाली

ऐसे सुत को जन्मोंजो जन हितकारी... जय जय...

नग्न दिगंबर भेष धारकरबन गये अविकारीस्वामी बन गये अविकारी

पिछी कमंडल सहित आपकीमूरत अति प्यारी... जय जय...

निशदिन तेरी करे आरतीसब मिल नर नारीस्वामी सब मिल नर नारी

शान्ति सुधारस पीनेप्यास लगी भारी... जय जय...

जो जो दर्शन करे आपकेबने आत्मज्ञानीस्वामी बने आत्मज्ञानी

मोक्ष महा फल पानेहम सब सिरनामी... जय जय...